SC ने कोविड पीड़ितों के परिजनों को ₹4 लाख के मुआवजे पर केंद्र से माँगा जवाब

दो वकीलों (गौरव कुमार बंसल और रीपक कंसल) द्वारा दायर जनहित याचिका में दोनों ने महामारी के दौरान मारे गए लोगों के परिवारों के लिए अनुग्रह मुआवजे का मुद्दा उठाया।

सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्र और राज्यों को कोरोनोवायरस पीड़ितों के परिवारों को ₹4 लाख का मुआवजा और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति प्रदान करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोरोना वायरस से मरने वालों के परिवारों को ₹4 लाख के मुआवजे की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एम.आर.शाह की पीठ ने केंद्र से कोविड -19 पीड़ितों के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने पर आईसीएमआर दिशानिर्देश दिखाने के लिए कहा, यह कहते हुए कि ऐसे दस्तावेज जारी करने के लिए एक समान नीति होनी चाहिए।

याचिका की बुनियाद

8 अप्रैल 2015 को, केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत राष्ट्रीय आपदा से मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को 4 लाख रुपये के मुआवजे को अधिसूचित किया था।

चूंकि इस अधिनियम के तहत महामारी को राष्ट्रीय-आपदा के रूप में अधिसूचित किया गया है, इसलिए कोविड पीड़ितों के परिजनों को निर्धारित मुआवजा मिलना चाहिए, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया।

सरकार के साथ क्या है समस्या?

कोविड की वजह से मृत्यु के आंकड़ें 3 लाख को पार चुकी है, ऐसे में सरकार को 12,000 करोड़ रूपये की एक बिल लाने की आवश्यकता पड़ सकती है।

इस राषी को राष्ट्रीय और राज्य आपदा राहत कोष से निपटाना होगा।

कोविड से संबंधित मौत के लिए दिशानिर्देश क्या कहते हैं?

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली (ICMR) और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (NCDIR) पिछले साल कोविड से संबंधित मौतों की रिकॉर्डिंग के लिए मार्गदर्शन लेकर आए थे।

दिशानिर्देश कहते हैं: “मरीज यदि पहले से मौजूद अन्य सहरुग्णता वाली स्थितियों के साथ उपस्थित होते हैं, इन स्थितियों से श्वसन संक्रमण विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है और एक कोविड संक्रमित व्यक्ति में जटिलताएं और गंभीर बीमारी हो सकती है। इन स्थितियों को मृत्यु का अंतर्निहित कारण नहीं माना जा सकता। क्योंकि मृतक की मौत सीधे तौर पर कोविड के कारण नहीं हुई है।”

आईसीएमआर (ICMR) द्वारा जारी दिशा-निर्देश प्रकृति में सलाह के तहत देखा जा सकता हैं और यह अनिवार्य नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि इसे लागू करने के लिए पूरी तरह से राज्यों पर निर्भर है।

फ़िलहाल के लिए इस मामले को कुछ दिनों के लिए टाल दिया गया है, और अब इसकी अगली सुनवाई 11 जून को होगी।

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