“रंगीला रसूल” एक पुस्तक है जिसने अपने समय में एक बड़े विवाद को उत्पन्न किया था। यह पुस्तक 1923 में प्रकाशित हुई थी और इसमें इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के जीवन के एक पहलू का विवरण है। पुस्तक में उपन्यासकार ने व्यंग्यपूर्ण रूप से मोहम्मद के घरेलू जीवन की कहानी को प्रस्तुत किया है।
“रंगीला रसूल” का उपन्यास मुख्य रूप से उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन पर ध्यान केंद्रित है, लेकिन इसमें विवादित सामग्री का प्रयोग किया गया है जिसके कारण यह पुस्तक मुस्लिम समुदाय में बड़े विवादों का कारण बनी।
पुस्तक के प्रकाशन के समय से ही विवाद बढ़ गया और इस पर कानूनी कार्रवाई की गई। “रंगीला रसूल” के प्रकाशक महाशय राजपाल को गिरफ्तार किया गया और उनकी हत्या कर दी गई।
इस पुस्तक के विवादित विषयों के कारण, यह पुस्तक आज भी कई देशों में प्रतिबंधित है और इसका नाम विवादों से जुड़ा हुआ है।
“रंगीला रसूल” के विवादों में रहने के कारण?
1923 में, मुस्लिम समुदाय ने हिन्दू समुदाय के खिलाफ दो आपत्तिजनक पुस्तकें प्रकाशित की थीं। “कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी” नामक पुस्तक में श्रीकृष्ण और अन्य हिन्दू देवताओं के खिलाफ अपमानजनक और अश्लील भाषा का इस्तेमाल किया गया था, जबकि “यूनिसेवी सादी का महर्षि” पुस्तक में “स्वामी दयानंद सरस्वती” और आर्य समाज के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ थीं।
इस प्रतिक्रिया का जवाब देने के लिए, महाशय राजपाल के दोस्त पंडित चामुपति लाल ने एक उपन्यास लिखा जिसका शीर्षक था “रंगीला रसूल”। इस उपन्यास में एक व्यंग्यपूर्ण कहानी के माध्यम से इस्लामिक पैगंबर मोहम्मद के जीवन का वर्णन किया गया था।
पुस्तक के अपमानजनक साहित्य के कारण, महाशय राजपाल ने इसके लेखक का नाम नहीं खोला था और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके परिणामस्वरूप, “इल्म-उद-दीन” नामक व्यक्ति ने महाशय राजपाल की हत्या कर दी।
पुस्तक में मोहम्मद के व्यक्तिगत जीवन, उनके विवाह और यौन जीवन का वर्णन किया गया था, जिससे कई मुस्लिम समुदाय क्रोधित हो गए थे। इस विवाद के परिणामस्वरूप, एक मामला दर्ज किया गया और धारा 295 (ए) के तहत मुकदमा चलाया गया।
यह विवाद मुस्लिम समुदाय में गंभीर बहस और आपसी विश्वासों के प्रति अस्मिता को लेकर बढ़ गया और इससे नतीजतन सामाजिक और कानूनी सुधार की मांग की गई। इसके बावजूद, लाहौर उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि लेखन विभिन्न धर्मों के बीच द्वेष या नफ़रत का कारण नहीं बन सकता है और इसलिए लेखन का अभियोजन कानूनी रूप से नहीं हो सकता।
“रंगीला रसूल” के प्रकाशक और लेखक की प्रामाणिकता विवादित थी, और इसके परिणामस्वरूप विवाद में महाशय राजपाल की हत्या हुई और उनके द्वारा उपन्यास के लेखक का नाम नहीं खोलने के कारण उन्हें दंडित किया गया।
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शीर्षक – रंगीला रसूल
लेखक – पंडित एम. ए. चामुपति या कृष्ण प्रसाद प्रतापी
प्रकाशक – महाशे राजपाली
प्रकाशन तिथि – 1927
मीडिया प्रकार – PDF
पृष्ठों की कुल संख्यां – 58